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स्रोत: वैदिक काल की जानकारी वेदों से मिलती है।
वेद: ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन, अर्थ – \”जानना\”।
संस्थापक: आर्य, संस्कृत भाषा का शब्द, श्रेष्ठता व स्वतंत्रता का प्रतीक।
लिपि: आर्यों को लिपि की जानकारी नहीं थी।
वैदिक साहित्य:
वैदिक साहित्य के दो भाग
श्रुति साहित्य – वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद।
वेदों का संकलन कृष्ण द्वैपायन व्यास ने किया, इसलिए वे वेदव्यास कहलाए।
स्मृति साहित्य – वेदांग, सूत्र, ग्रंथ।
वेद (चार वेद)
1. ऋग्वेद
कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त, 10,462 मंत्र।
गायत्री मंत्र (विश्वामित्र) – तीसरा मंडल।
सातवां मंडल वरुण को समर्पित।
नौवें मंडल में सोम का वर्णन।
पुरुषसूक्त (दसवां मंडल) – चार वर्णों का वर्णन।
इन्द्र (250 बार), अग्नि (200 बार) का उल्लेख।
ऋग्वेद का उपवेद – आयुर्वेद।
शाकल शाखा – ऋग्वेद की एकमात्र जीवित शाखा।
2. सामवेद– MUSIC
गायी जाने वाली ऋचाओं का संकलन।
1549 मंत्र (75 छोड़कर शेष ऋग्वेद से लिए गए)।
भारतीय संगीत का जनक – सात स्वरों की जानकारी।
सामवेद का उपवेद – गंधर्ववेद।
शाखाएँ – कौथुम, रामायनीय, जैमीनीय।
3. यजुर्वेद
यज्ञ, अनुष्ठान, कर्मकांड मंत्रों का संकलन।
गद्य और पद्य दोनों में रचित।
विभाजन – कृष्ण यजुर्वेद (गद्य), शुक्ल यजुर्वेद (पद्य)।
कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ – वैतिरीय ब्राह्मण।
शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ – शतपथ ब्राह्मण।
यजुर्वेद का उपवेद – धनुर्वेद।
वेद एवं उनके पुरोहित, उपवेद, ब्राह्मण ग्रंथ
वेद
पुरोहित
उपवेद
ब्राह्मण ग्रंथ
ऋग्वेद
होतृ
आयुर्वेद
ऐतरेय, कौषीतकी
सामवेद
उद्गाता
गंधर्ववेद
जैमिनीय, तांड्य
यजुर्वेद
अध्वर्य
धनुर्वेद
शतपथ, तैत्तिरीय
अथर्ववेद
ब्रह्मा
अर्थवेद
गोपथ
अथर्ववेद
रोग नाशक मंत्र, जादू-टोना, विवाह गीत
कोई आरण्यक ग्रंथ नहीं है।
आरण्यक
वनों में रचित ग्रंथ, दार्शनिक रहस्यों से परिपूर्ण।
ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग के बीच सेतु।
मुख्य आरण्यक: ऐतरेय, वृहदारण्यक, कौषीतकी, शतपथ
उपनिषद
वेदों का अंतिम भाग (वेदांत)
कुल संख्या: 108
प्रमुख उपनिषद:
कठोपनिषद – नचिकेता-यम संवाद
वृहदारण्यक – अहम् ब्रह्मास्मि, पुनर्जन्म
मुण्डकोपनिषद – सत्यमेव जयते
इशोपनिषद – निष्काम कर्म का पहला विवरण
श्वेताश्वतर – भक्ति शब्द का प्रथम उल्लेख
वेदांग (वेदों के अंगभूत शास्त्र) — 6
शिक्षा (उच्चारण)
कल्प (कर्मकांड)
व्याकरण
निरुक्त (भाषा विज्ञान)
छंद
ज्योतिष
स्मृति ग्रंथ
हिंदू धर्म के कानूनी ग्रंथ
मनुस्मृति (ई.पू. 200): सबसे प्राचीन ग्रंथ
महाभारत
रचयिता: वेदव्यास
कुल पर्व: 18
प्रारंभिक श्लोक: 8800
महाकाव्य
महाभारत: प्रारंभ में जय संहिता (8,800 श्लोक), फिर भारत (24,000 श्लोक) और अंततः महाभारत (100,000 श्लोक)।
रामायण: वाल्मीकि द्वारा रचित, प्रारंभ में 6,000 श्लोक, फिर 12,000, और अंततः 24,000 श्लोक।
पुराण — 18
कुल 18 पुराण, संकलन गुप्तकाल में हुआ।
प्रमुख पुराण: मत्स्य, वायु, विष्णु, शिव, ब्रह्मांड, भागवत।
मत्स्य पुराण: विष्णु के दस अवतारों का विवरण, सबसे प्राचीन।
विष्णु पुराण: सातवाहन
वायु पुराण: गुप्त वंश का उल्लेख।
सूत्र साहित्य
गृहसूत्र: जातकर्म, विवाह, श्राद्ध आदि।
श्रोतसूत्र: राजा द्वारा किए जाने वाले यज्ञ।
धर्मसूत्र: धर्म संबंधी विधियाँ।
शुल्बसूत्र: यज्ञवेदी निर्माण, ज्यामिति व गणित का प्रारंभ।
वेद एवं विशेषताएँ
वैदिक पद्य: ऋचा (पद्य), यजुष (गद्य), साम (गेय)।
वैदत्रयी:ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद।
ऋग्वेद की 21 शाखाएँ (पाणिनि के अनुसार)।
ऐतरेय ब्राह्मण में राजा को \”विश्मत्ता\” (कर लेने वाला स्वामी) कहा गया।
ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई. पू.)
आर्यों का आगमन एवं विस्तार
मैक्समूलर के अनुसार, आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया था।
जीवविज्ञानियों के अनुसार, M-17 आनुवांशिक संकेत मध्य एशिया के 40% से अधिक लोगों एवं दिल्ली के 35% से अधिक हिन्दी भाषी लोगों में पाया गया।
इस आधार पर निष्कर्ष निकला कि आर्य मध्य एशिया से भारत आए।
आर्यों का मूल निवास (विद्वानों के मत)
विद्वान
मूल निवास
दयानन्द सरस्वती
तिब्बत
मैक्समूलर, रीड
मध्य एशिया
आर्यों का विस्तार
आर्य मूल रूप से हिमालय, अफगानिस्तान और यमुना नदी के समानांतर क्षेत्रों में फैले।
ऋग्वेद के 10वें मण्डल (नदी सूक्त) में 21 नदियों का वर्णन मिलता है।
ऋग्वैदिक नदियाँ
प्राचीन नाम
वर्तमान नाम
सिन्धु
सिन्धु
अस्किनी
चिनाब
शतुद्री
सतलज
विपाशा
व्यास
वितस्ता
झेलम
सरस्वती / दृष्टिवती
घग्घर
परूष्णी
रावी
अफगानिस्तान की नदियाँ
नदी
स्थान
कुभा
काबुल
कुमु
कुर्रम
सुवास्तु
स्वात
गोमती
गोमल
सिन्धु नदी – ऋग्वैदिक आर्यों की प्रमुख नदी, जिसे \”हिरण्यानी\” कहा गया।
सरस्वती नदी – इसे \”नदीत्तमा\” (सर्वश्रेष्ठ नदी) कहा गया। संभवतः अवेस्ता की हरख्वति (हेलमंद) नदी।
सप्त सिन्धु प्रदेश – आर्यों का प्रथम निवास क्षेत्र (सरस्वती, सिन्धु और उसकी 5 सहायक नदियाँ)।
ब्रह्मऋषि देश – गंगा-यमुना दोआब और उसके आसपास का क्षेत्र।
गंडक नदी – \”सदानीरा\” नाम से प्रसिद्ध।
समुद्र का अर्थ – बड़ी जलराशि, आधुनिक सागर नहीं।
मरूस्थल के लिए शब्द – \”धन्व\”।
भरतवंश के राजा – ऋग्वेद में उल्लेख।
जनजातीय संघर्ष
ऋग्वेद में \”दस्युहत्या\” का उल्लेख है, \”दासहत्या\” का नहीं।
पंचजन – आर्यों के पाँच प्रमुख कबीले।
भरत और त्रित्सु – प्रमुख आर्य शासक वंश।
पुरूजन – पराजित जनों में सबसे महान।
भरत और पुरू मिलकर आगे कुरू वंश की स्थापना करते हैं।
सामाजिक जीवन
स्त्रियाँ – सभा-समिति में भाग ले सकती थीं, यज्ञ में आहुति दे सकती थीं।
पर्दा प्रथा व सती प्रथा – प्रचलित नहीं थी।
नियोग प्रथा व विधवा विवाह – प्रचलित था।
भोजन व कृषि
शाकाहारी व मांसाहारी भोजन दोनों प्रचलित थे।
यव (जौ) – प्रमुख फसल।
सामाजिक जीवन
गोत्र या जन्ममूलक संबंध समाज का आधार था।
पितृसत्तात्मक समाज, सबसे छोटी इकाई परिवार (कुल), जिसका प्रधान कुलप होता था।
आर्थिक जीवन
ग्राम आधारित सभ्यता, मुख्य आधार पशुपालन, कृषि गौण थी।
गाय का विशेष महत्व – ऋग्वेद में 176 बार उल्लेख।
गोहना (अतिथि), गोमत (धनी व्यक्ति), गोधूली (संध्या), अधन्या (न मारी जाने वाली गाय), गविष्टि (गाय का अन्वेषण) जैसे शब्द गाय से जुड़े हैं।
कृषि का उल्लेख केवल 24 श्लोकों में।
प्रमुख शिल्पी – बढ़ई, रथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार।
अयस – तांबे या कांसे के लिए प्रयुक्त शब्द।
राजनीतिक जीवन
शासन कबीले के प्रधान \”राजन्\” द्वारा संचालित।
प्रशासनिक संरचना:
कुल (कुलप) → ग्राम (ग्रामिणी) → विश (विशपति) → जन (राजन्)
राज्यक्षेत्र स्थापित नहीं हुआ था – ऋग्वेद में \”जन\” शब्द 275 बार, लेकिन \”जनपद\” शब्द एक बार भी नहीं आया।
समिति के प्रमुख को ईशान कहा जाता था।
बलि – राजा को दिया जाने वाला स्वैच्छिक कर।
धार्मिक जीवन
कुल 33 देवताओं का उल्लेख।
इंद्र (पुरंदर, वृतहन्ता, सोमापा) – सबसे प्रतापी देवता, वर्षा के देवता
अग्नि – दूसरा स्थान, देवताओं और मानवों के मध्यस्थ,
वरुण – तीसरा स्थान, जल/समुद्र का देवता,
अन्य देवता:
सोम – वनस्पति के देवता
मरूत – आँधी के देवता
उषा – प्रगति एवं उत्थान की देवी
पूषण – पशुओं के देवता
अरण्यानी – जंगल की देवी
द्यौ – आकाश का देवता (सबसे प्राचीन)
उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई. पू.)
सामाजिक संगठन
चार वर्ण – ब्राह्मण, राजन्य (क्षत्रिय), वैश्य, शूद्र।
चार आश्रम – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास। पहली बार जाबालोपनिषद में उल्लेख।
नारी की स्थिति –
ऋग्वैदिक काल में उपनयन संस्कार था, उत्तर वैदिक काल में बंद हुआ।
अथर्ववेद में कन्या जन्म की निंदा, ऐतरेय ब्राह्मण में चिंता का कारण बताया गया।
तैत्तिरीय आरण्यक – स्त्रियों को ‘शूद्रवत पतित’ कहा।