1. संविधान सभा की मांग
यह मांग विभिन्न चरणों में की गई:
- 1934: एम. एन. रॉय द्वारा पहली बार विचार प्रस्तुत किया गया।
- 1935: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा आधिकारिक तौर पर मांग की गई।
- 1936: लखनऊ अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू द्वारा मांग को दोहराया गया।
- 1940: लिनलिथगो द्वारा “अगस्त ऑफर” में इस मांग को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया गया, लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने इसे खारिज कर दिया।
2. कैबिनेट मिशन योजना (1946)
- पृष्ठभूमि: 1945 में ब्रिटेन ने भारत को सत्ता हस्तांतरित करने की बात स्वीकार की।
- गठन: 1946 में यह मिशन भारत आया। इसके सदस्य थे:
- पैथिक लॉरेंस (अध्यक्ष)
- स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स
- ए. वी. अलेक्जेंडर
- मुख्य प्रावधान:
- कुल सीटें: 389
- सीटों का विभाजन:
- 296 सीटें (निर्वाचित): ब्रिटिश भारत के प्रांतों से।
- 93 सीटें (मनोनीत): देशी रियासतों से।
- ब्रिटिश भारत की सीटों का विभाजन:
- 292 सीटें: गवर्नर के शासन वाले प्रांतों से।
- 4 सीटें: चीफ कमिश्नर के शासन वाले प्रांतों से।
- निर्वाचन प्रक्रिया: अप्रत्यक्ष निर्वाचन (Indirectly elected)।
- समुदायों में विभाजन: सीटों को 3 प्रमुख समुदायों में बांटा गया – मुस्लिम, सिख और सामान्य।
- प्रतिनिधित्व का आधार: प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर 1 सीट।
- चुनाव: जुलाई-अगस्त 1946 में हुए।
- चुनाव परिणाम (296 सीटों पर):
- कांग्रेस: 208 सीटें
- मुस्लिम लीग: 73 सीटें
- अन्य: 15 सीटें
- विभाजन के बाद: भारत के विभाजन के बाद संविधान सभा में सीटों की संख्या घटकर 299 रह गई।
3. संविधान सभा (Constituent Assembly)
- प्रथम बैठक: 9 दिसंबर 1946 (इसमें 211 सदस्यों ने हिस्सा लिया)।
- उद्देश्य संकल्प: 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किया गया।
- उद्देश्य संकल्प की स्वीकृति: 22 जनवरी 1947 को सभा द्वारा इसे अपनाया गया।
- समितियों का गठन: कार्य को सुचारू रूप से करने के लिए 8 प्रमुख और 13 लघु समितियों का गठन किया गया।
4. सभा के कार्य और पदाधिकारी
संविधान सभा ने दोहरी भूमिका निभाई:
- संविधान निर्माता के रूप में:
- अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- अस्थायी अध्यक्ष: डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा (पहली बैठक के अध्यक्ष)
- कानून निर्माता (अंतरिम संसद) के रूप में:
- अध्यक्ष: जी. वी. मावलंकर
- अन्य पदाधिकारी:
- उपाध्यक्ष: टी.टी. कृष्णमाचारी और एच.सी. मुखर्जी
- कानूनी सलाहकार: बी. एन. राव
- मुख्य ड्राफ्ट्समैन: एस. एन. मुखर्जी
5. महत्वपूर्ण तिथियाँ
- 22 जुलाई 1947: राष्ट्रीय ध्वज अपनाया गया।
- मई 1949: कॉमनवेल्थ (राष्ट्रमंडल) की सदस्यता का सत्यापन किया गया।
- 24 जनवरी 1950 (अंतिम बैठक):
- रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रगान “जन गण मन” को अपनाया गया।
- बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” को अपनाया गया।
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया।
- संविधान पर 284 सदस्यों (15 महिलाओं सहित) ने हस्ताक्षर किए।
6. संविधान का अंतिम रूप
- निर्माण में लगा समय: 2 वर्ष, 11 महीने और 17 दिन।
- अपनाया गया: 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया। इसी दिन नागरिकता, चुनाव और अंतरिम संसद जैसे कुछ प्रावधान तुरंत लागू हो गए।
- लागू किया गया: 26 जनवरी 1950 को संविधान पूर्ण रूप से लागू हुआ।
- प्रतीक: हाथी।
- सजावट (Calligraphy):
- अंग्रेजी संस्करण: प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा लिखा गया।
- हिंदी संस्करण: वसंत कुमार वैद्य द्वारा लिखा गया।
- कलाकृति: नंद लाल बोस और बेओहर राममनोहर सिन्हा द्वारा सजाया गया।
- अंबेडकर का निर्वाचन: डॉ. बी.आर. अंबेडकर बंगाल निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे।
7. संविधान के प्रारूप (Drafts)
- अंतिम ड्राफ्ट का प्रकाशन: 4 नवंबर 1948 को अंतिम ड्राफ्ट पेश किया गया।
8. समितियाँ (Committees)
A) प्रमुख समितियाँ:
- संघ शक्ति समिति: जवाहरलाल नेहरू
- संघीय संविधान समिति: जवाहरलाल नेहरू
- प्रांतीय संविधान समिति: सरदार पटेल
- प्रारूप समिति (मसौदा समिति): डॉ. बी.आर. अंबेडकर
- मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों पर सलाहकार समिति: सरदार पटेल
- प्रक्रिया नियम समिति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- संचालन समिति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- राज्य समिति (राज्यों से वार्ता के लिए): जवाहरलाल नेहरू
B) प्रारूप समिति (Drafting Committee):
- गठन: 29 अगस्त 1947
- सदस्य (7):
- डॉ. बी.आर. अंबेडकर (अध्यक्ष)
- एन. गोपालस्वामी आयंगर
- अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर
- के.एम. मुंशी
- मुहम्मद सादुल्लाह
- एन. माधव राव (इन्होंने बी.एल. मित्तर की जगह ली)
- टी.टी. कृष्णमाचारी (इन्होंने डी.पी. खेतान की जगह ली)
C) गौण (लघु) समितियाँ:
- वित्त एवं कर्मचारी समिति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- क्रेडेंशियल्स समिति: अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर
- सदन समिति: बी. पट्टाभि सीतारमैया
- कार्य संचालन समिति: डॉ. के.एम. मुंशी
- राष्ट्रीय ध्वज पर तदर्थ समिति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- संविधान के मसौदे की जांच के लिए विशेष समिति: जवाहरलाल नेहरू
भाग 1: भारतीय संविधान की संघीय और एकात्मक विशेषताएँ
यह तालिका भारतीय संविधान में मौजूद संघीय (Federal) और एकात्मक (Unitary) विशेषताओं को दर्शाती है।
| संघीय विशेषताएँ (Federal Features) | एकात्मक विशेषताएँ (Unitary Features) |
| लिखित संविधान (Written Constitution) | एकल संविधान (Single Constitution) |
| संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of the Constitution) | एकल नागरिकता (Single Citizenship) |
| संविधान की कठोरता (Rigidity of Constitution) | एकीकृत न्यायपालिका (Integrated Judiciary) |
| न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary) | अखिल भारतीय सेवाएँ (All India Services) |
| द्विसदनीयता (Bicameralism) | आपातकालीन प्रावधान (Emergency provisions) |
| दोहरी सरकार (Dual Government) | केंद्र द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति (Appointment of governors by centre) |
संविधान के स्वरूप पर विभिन्न विचारकों की टिप्पणियाँ:
- के. सी. व्हेयर (K.C. Wheare): “अर्ध-संघीय” (Quasi-federal)
- ग्रेनविले ऑस्टिन (Granville Austin): “सहकारी संघवाद” (Cooperative federalism)
- आइवर जेनिंग्स (Ivor Jennings): “एकात्मक झुकाव वाला संघ” (Federation with a unitary bias)
भाग 2: प्रस्तावना (Preamble) और अनुसूचियाँ (Schedules)
यह खंड भारतीय संविधान के स्रोत, प्रस्तावना और अनुसूचियों का विस्तृत विवरण देता है।
A. संविधान के स्रोत (Source of the Constitution)
1. भारत सरकार अधिनियम, 1935: भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव इसी अधिनियम का पड़ा। यहाँ से लिए गए प्रमुख प्रावधान हैं:
- संघीय योजना (Federal Scheme)
- राज्यपाल का कार्यालय (Office of Governor)
- न्यायपालिका की संरचना (PCS – संभवतः प्रांतीय सिविल सेवा का ढाँचा)
- आपातकालीन प्रावधान
- लोक सेवा आयोग
- सरकार का संसदीय स्वरूप
2. यूनाइटेड किंगडम (UK):
- संसदीय सरकार
- कानून का शासन (Rule of Law)
- विधायी प्रक्रिया
- एकल नागरिकता
- कैबिनेट प्रणाली
- संसदीय विशेषाधिकार
- द्विसदनीयता
- रिट (Writs)
3. संयुक्त राज्य अमेरिका (USA):
- मौलिक अधिकार
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- न्यायिक समीक्षा (Judicial Review)
- राष्ट्रपति पर महाभियोग
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया
- उपराष्ट्रपति का पद
- कानून का समान संरक्षण
4. आयरलैंड (Ireland):
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (DPSP)
- राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन
- राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति
5. कनाडा (Canada):
- एक मजबूत केंद्र के साथ संघवाद
- अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना
- केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति
- सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार
6. ऑस्ट्रेलिया (Australia):
- समवर्ती सूची
- व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
- संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
7. जर्मनी (वेइमर संविधान):
- आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन
8. सोवियत संघ (USSR/रूस):
- मौलिक कर्तव्य
- प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) का आदर्श
- पंचवर्षीय योजनाएँ
9. फ्रांस (France):
- गणतंत्रात्मक ढाँचा
- प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुता के आदर्श
10. जापान (Japan):
- कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया
B. प्रस्तावना (Preamble)
- उधार लिया गया:
- संकल्पना (Concept): USA से
- भाषा (Language): ऑस्ट्रेलिया से
- आधार: यह उद्देश्य संकल्प (Objective Resolution) का संशोधित रूप है।
- अपनाया गया: 26 नवंबर 1949 है)।
- लागू हुआ: 26 जनवरी 1950
- प्रस्तावना पर कथन:
- एन. ए. पालकीवाला: “संविधान का पहचान पत्र”
- के. एम. मुंशी: “संविधान की कुंडली (Horoscope)”
- अर्न्स्ट बार्कर: “संविधान की कुंजी (Keynote)”
- घटक (Ingredients):
- अधिकार का स्रोत: भारत के लोग
- प्रकृति: संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य
- उद्देश्य:
- न्याय: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक
- स्वतंत्रता: विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की
- समानता: प्रतिष्ठा और अवसर की
- बंधुता: व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करना
- संशोधन:
- केवल एक बार, 42वें संविधान संशोधन, 1976 (जिसे ‘मिनी संविधान’ भी कहते हैं) द्वारा।
- जोड़े गए शब्द: समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता।
- प्रस्तावना से संबंधित मामले (Cases):
- बेरुबारी यूनियन मामला (1960): प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है और इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता।
- केशवानंद भारती मामला (1973): प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है और इसमें संशोधन किया जा सकता है। (इस मामले में अब तक की सबसे बड़ी 13 न्यायाधीशों की पीठ बैठी थी)।
- LIC मामला (1995): केशवानंद भारती मामले के निर्णय की पुष्टि की।
C. अनुसूचियाँ (Schedules)
मूल रूप से संविधान में 8 अनुसूचियाँ थीं, वर्तमान में 12 हैं।
- पहली अनुसूची: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नाम और उनके क्षेत्र विस्तार।
- दूसरी अनुसूची: विभिन्न पदाधिकारियों के वेतन, भत्ते और पेंशन (परिलब्धियाँ)।
- तीसरी अनुसूची: विभिन्न उम्मीदवारों और पदाधिकारियों द्वारा ली जाने वाली शपथ और प्रतिज्ञान।
- चौथी अनुसूची: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए राज्यसभा में सीटों का आवंटन।
- पांचवीं अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित प्रावधान।
- छठी अनुसूची: असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान।
- सातवीं अनुसूची (संघीय प्रावधान): केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन। इसमें तीन सूचियाँ हैं:
- संघ सूची (Union List): रक्षा, बैंकिंग, मुद्रा, विदेश मामले, संचार आदि। इस पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है। (मूल रूप से 97, अब 100 विषय)
- राज्य सूची (State List): पुलिस, व्यापार, कृषि, सिंचाई आदि। इस पर राज्य सरकार कानून बनाती है।
- समवर्ती सूची (Concurrent List): शिक्षा, वन, व्यापार संघ, विवाह, गोद लेना आदि। इस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। 42वें संशोधन द्वारा 5 विषय राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किए गए।
- आठवीं अनुसूची (राजभाषाएँ):
- मूल रूप से: 14 भाषाएँ
- वर्तमान में: 22 भाषाएँ
- 21वां संशोधन: सिंधी को जोड़ा गया।
- 71वां संशोधन: कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली को जोड़ा गया।
- 92वां संशोधन: बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को जोड़ा गया।
- 96वां संशोधन: ‘उड़िया’ का नाम बदलकर ‘ओडिया’ किया गया।
- नौवीं अनुसूची: भूमि सुधार और जमींदारी प्रथा के उन्मूलन से संबंधित कानून। (पहले संशोधन, 1951 द्वारा जोड़ी गई)।
- दसवीं अनुसूची: दल-बदल के आधार पर अयोग्यता के प्रावधान। (52वें संशोधन, 1985 द्वारा जोड़ी गई)।
- ग्यारहवीं अनुसूची: पंचायतें। (73वें संशोधन, 1992 द्वारा जोड़ी गई)।
- बारहवीं अनुसूची: नगरपालिकाएँ। (74वें संशोधन, 1993 द्वारा जोड़ी गई)।
भाग-I: संघ एवं उसका क्षेत्र (Union & Its territory)
अनुच्छेद 1: संघ का नाम और क्षेत्र
- भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा।
- भारत का क्षेत्र शामिल करेगा:
- राज्यों के क्षेत्र।
- पहली अनुसूची में निर्दिष्ट केंद्र शासित प्रदेश।
- ऐसे अन्य क्षेत्र जो अधिग्रहीत किए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 2: नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
- संसद कानून द्वारा संघ में नए राज्यों को प्रवेश दे सकती है या नए राज्यों की स्थापना कर सकती है।
अनुच्छेद 3: नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
- संसद कानून द्वारा:
- किसी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ा या घटा सकती है।
- राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।
- किसी राज्य का नाम बदल सकती है।
- प्रावधान:
- ऐसा कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद के किसी भी सदन में पेश नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 4: अनुच्छेद 2 और 3 के तहत बनाए गए कानून
- 100वां संविधान संशोधन: भारत-बांग्लादेश समझौते के तहत कुछ क्षेत्रों का आदान-प्रदान किया गया।
भाग-II: नागरिकता (Citizenship)
प्रावधान:
- अनुच्छेद 5 से 11 तक।
- संसद द्वारा विनियमित।
- एकल नागरिकता का प्रावधान ब्रिटेन (UK) से लिया गया है।
संविधान के प्रारंभ में नागरिकता (अनुच्छेद 5):
- व्यक्ति का भारत में अधिवास (domicile) होना चाहिए।
- और निम्न में से कोई एक शर्त पूरी करे:
- उसका जन्म भारत में हुआ हो।
- उसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में हुआ हो।
- वह संविधान लागू होने से ठीक पहले कम से कम 5 वर्ष तक भारत में सामान्य रूप से निवासी रहा हो।
नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955)
- नागरिकता प्राप्त करने के तरीके:
- जन्म से (By birth):
- वंश से (By descent): भारत के बाहर जन्मे व्यक्ति, यदि उनके माता-पिता में से कोई भारतीय नागरिक हो।
- पंजीकरण द्वारा (By registration): भारतीय मूल का व्यक्ति जो 7 साल से भारत में रह रहा हो।
- प्राकृतिक रूप से (By naturalisation): विदेशी व्यक्ति जो 12 साल (11 साल + आवेदन से पहले 1 साल) से भारत में रह रहा हो।
- क्षेत्र के समावेश से (By incorporation of territories):
- नागरिकता खोने के तरीके:
- स्वैच्छिक त्याग (By renunciation):
- समाप्ति (By termination): यदि कोई भारतीय स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ले लेता है।
- वंचित करना (By deprivation): धोखाधड़ी से नागरिकता प्राप्त करने, संविधान का अनादर करने या युद्ध के दौरान शत्रु देश की मदद करने पर।
- नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA):
- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए 6 समुदायों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई) के लोगों को प्राकृतिक रूप से नागरिकता देने की प्रक्रिया में छूट।
- इन लोगों के लिए भारत में रहने की अवधि 12 साल से घटाकर 6 साल कर दी गई।
- मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं किए जाने के कारण यह विवाद का कारण बना।
राज्यों का गठन (Formation of States)
भाषाई प्रावधान आयोग:
- पोट्टी श्रीरामुलु का अनशन:
- तेलुगु भाषी क्षेत्र के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर इन्होंने 56 दिनों का आमरण अनशन किया, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई।
- उनकी मृत्यु के बाद, भारत का पहला भाषाई राज्य आंध्र प्रदेश सितंबर/अक्टूबर 1953 में बना।
- फ़ज़ल अली आयोग (दिसंबर 1953):
- अध्यक्ष: फ़ज़ल अली
- सदस्य: के. एम. पणिक्कर, एच. एन. कुंजरू
- इसने “एक भाषा, एक राज्य” के सिद्धांत को खारिज कर दिया।
- इसने राज्यों के गठन के लिए भाषाई आधार को स्वीकार कर लिया।
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956:
- इसके आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए।
राज्यों का गठन (समयरेखा):
- 1 नवंबर 1956: आंध्र प्रदेश (पूर्ण राज्य)
- 1960: महाराष्ट्र, गुजरात
- 1963: नागालैंड
- 1966: हरियाणा
- 1971: हिमाचल प्रदेश
- 1972: मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा
- 1975: सिक्किम ( 35वें संशोधन, 1974 द्वारा सहयोगी राज्य और 36वें संशोधन, 1975 द्वारा पूर्ण राज्य का दर्जा)।
- 1987: गोवा (56वें संशोधन द्वारा राज्य का दर्जा), अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम
भाग-III: मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
- अनुच्छेद: 12-35
- उपनाम: मैग्ना कार्टा (Magna Carta)
- प्रकृति:
- ये अधिकार पूर्ण नहीं हैं, बल्कि योग्य (qualified) हैं, यानी इन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
- ये स्थायी नहीं हैं, संसद इनमें संशोधन कर सकती है।
- ये प्रकृति में न्यायोचित (justiciable) हैं, यानी इनके उल्लंघन पर न्यायालय में जाया जा सकता है।
- नागरिकों को उपलब्ध अधिकार: अनुच्छेद 15, 16, 19, 29 और 30 केवल भारतीय नागरिकों के लिए हैं।
अनुच्छेद 12: ‘राज्य’ की परिभाषा
‘राज्य’ शब्द के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं:
- भारत सरकार और संसद।
- राज्य सरकारें और राज्य विधानमंडल।
- सभी स्थानीय प्राधिकरण (नगर पालिकाएं, पंचायतें, आदि)।
- अन्य सभी प्राधिकरण (जैसे LIC, ONGC आदि)।
अनुच्छेद 13: मौलिक अधिकारों से असंगत कानून
- कोई भी कानून जो मौलिक अधिकारों के साथ असंगत या उनका उल्लंघन करता है, उसे न्यायपालिका द्वारा अमान्य (null & void) घोषित कर दिया जाएगा। इसे न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की शक्ति कहते हैं, जो USA से ली गई है।
संपत्ति का अधिकार:
- मूल रूप से यह अनुच्छेद 31 और 19(1)(f) के तहत एक मौलिक अधिकार था।
- 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा इसे हटा दिया गया। उस समय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे।
- अब यह अनुच्छेद 300-A के तहत एक कानूनी अधिकार है।
समानता का अधिकार (Right to Equality) – अनुच्छेद 14-18
अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
- कानून के समक्ष समानता (Equality before the law): यह अवधारणा ब्रिटेन (UK) से ली गई है।
- कानून का समान संरक्षण (Equal protection of the law): यह अवधारणा USA से ली गई है।
- अपवाद: राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके कार्यकाल के दौरान नागरिक मामलों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध
अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता
- अपवाद (अनुच्छेद 16(4)): राज्य पिछड़े वर्गों के लिए नियुक्ति या पदों में आरक्षण का प्रावधान कर सकता है। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
- संबंधित मामले (Cases):
- बालाजी बनाम मैसूर राज्य
- देवदासन बनाम भारत संघ मामला
- इंदिरा साहनी मामला (1993)
अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन
अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत
स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19-22
अनुच्छेद 19: छह अधिकारों का संरक्षण
सभी नागरिकों को अधिकार है:
- (a) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का।
- (b) शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के इकट्ठा होने का।
- (c) संघ या यूनियन बनाने का।
- (d) भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का।
- (e) भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का।
- (g) किसी भी पेशे का अभ्यास करने या कोई भी व्यवसाय, व्यापार करने का।
अनुच्छेद 20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
- No ex-post-facto law: किसी व्यक्ति को केवल उस समय लागू कानून के उल्लंघन के लिए ही दोषी ठहराया जाएगा।
- No double jeopardy: एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति पर एक से अधिक बार मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
- No self-incrimination: किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा
- कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
- इसमें सोने का अधिकार, विदेश यात्रा का अधिकार, निजता का अधिकार (के.एस. पुट्टस्वामी मामला) आदि शामिल हैं।
अनुच्छेद 21A: शिक्षा का अधिकार
- राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
- इसे 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा जोड़ा गया।
अनुच्छेद 22: कुछ मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण
- गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराए बिना हिरासत में नहीं रखा जाएगा।
- उसे 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।
- हिरासत के प्रकार:
- दंडात्मक (Punitive): अपराध करने के बाद।
- निवारक (Preventive): अपराध करने के संदेह पर।
शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) – अनुच्छेद 23-24
अनुच्छेद 23: मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक
अनुच्छेद 24: बाल श्रम पर रोक — 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी खतरनाक कारखाने या खान में काम पर नहीं लगाया जा सकता।
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religion) – अनुच्छेद 25-28
अनुच्छेद 25: धर्म को प्रचार करने की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 27: किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिए करों के भुगतान के संबंध में स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 28: कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में उपस्थिति के संबंध में स्वतंत्रता।
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights) – अनुच्छेद 29-30
अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा
- भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 30: शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यकों का अधिकार
- सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) – अनुच्छेद 32
अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचारों का अधिकार
- बी. आर. अंबेडकर ने इसे ‘संविधान की हृदय और आत्मा’ कहा।
- मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने का अधिकार।
- सुप्रीम कोर्ट (अनुच्छेद 32) और हाई कोर्ट (अनुच्छेद 226) रिट जारी कर सकते हैं।
- रिट के प्रकार (Types of Writs): UK से लिए गए हैं।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus): ‘शरीर को प्रस्तुत करो’।
- परमादेश (Mandamus): ‘हम आदेश देते हैं’।
- प्रतिषेध (Prohibition): ‘रोकना’।
- उत्प्रेषण (Certiorari): ‘प्रमाणित होना’ या ‘सूचित किया जाना’।
- अधिकार-पृच्छा (Quo-Warranto): ‘किस अधिकार से’।
- सुप्रीम कोर्ट रिट जारी करने से इनकार नहीं कर सकता, लेकिन हाई कोर्ट कर सकता है। हाई कोर्ट का रिट क्षेत्राधिकार सुप्रीम कोर्ट से व्यापक है।
अनुच्छेद 33: संसद को सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों आदि के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने की शक्ति।
अनुच्छेद 34: मार्शल लॉ (सैन्य शासन) लागू होने पर मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध।
अनुच्छेद 35: मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाने की शक्ति केवल संसद में निहित है।
भाग-IV: राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy – DPSP)
- उधार लिया गया: आयरलैंड से।
- अनुच्छेद: 36-51
- विशेषता: ये गैर-न्यायसंगत (non-justiciable) हैं, यानी इन्हें किसी भी न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जा सकता (अनुच्छेद 37)। ये राज्य के लिए नैतिक दायित्व हैं।
- उद्देश्य: सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना।
- DPSP पर बयान (Statements):
- बी. आर. अंबेडकर: “संविधान की नवीन विशेषता” (Novel feature of Constitution)।
- ग्रेनविले ऑस्टिन: “संविधान की अंतरात्मा” (Conscience of the Constitution)।
- के. सी. व्हेयर: “भारत का संघवाद अर्ध-संघीय है” (India’s Federalism is Quasi-federal)।
- प्रो. के. टी. शाह: “DPSP बैंक पर उस चेक की तरह है जो बैंक की सुविधानुसार देय होता है”।
- अनुच्छेद 36: ‘राज्य’ की परिभाषा वही है जो भाग-III (अनुच्छेद 12) में है।
- अनुच्छेद 38: राज्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देगा और आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करेगा (44वें संशोधन, 1978 द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 39: राज्य अपनी नीति का इस प्रकार संचालन करेगा कि:
- (a) सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधन का अधिकार हो।
- (b) समुदाय के भौतिक संसाधनों का वितरण आम भलाई के लिए हो।
- (c) धन और उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण न हो।
- (d) पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान काम के लिए समान वेतन हो।
- (e) श्रमिकों के स्वास्थ्य और शक्ति का दुरुपयोग न हो।
- (f) बच्चों को स्वस्थ तरीके से विकसित होने के अवसर और सुविधाएं दी जाएं (42वें संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 39A: गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना (42वें संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों का संगठन करना और उन्हें शक्तियाँ प्रदान करना।
- अनुच्छेद 41: कुछ दशाओं में (बेरोजगारी, बुढ़ापा, बीमारी और विकलांगता) काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता पाने का अधिकार।
- अनुच्छेद 43: कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, एक सभ्य जीवन स्तर और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
- अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करना (42वें संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 44: पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करना।
- अनुच्छेद 45: सभी बच्चों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना (86वें संशोधन, 2002 द्वारा संशोधित)।
- अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों पर विशेष ध्यान देना।
- अनुच्छेद 47: पोषण के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाना तथा नशीले पेय और दवाओं के सेवन पर प्रतिबंध लगाना।
- अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर संगठित करना तथा गायों और बछड़ों के वध पर रोक लगाना।
- अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करना (42वें संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 49: ऐतिहासिक रुचि के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की रक्षा करना।
- अनुच्छेद 50: सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना।
- अनुच्छेद 51: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना तथा राष्ट्रों के बीच सम्मानजनक संबंध बनाए रखना।
भाग-IV(A): मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)
- उधार लिया गया: USSR (सोवियत संघ) से।
- समिति: सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर।
- संशोधन: 42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा जोड़े गए।
- प्रकृति: ये केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होते हैं और गैर-न्यायसंगत हैं।
- संख्या:
- प्रारंभ में (10 कर्तव्य): 42वें संशोधन द्वारा जोड़े गए।
- 11वां कर्तव्य: 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा जोड़ा गया।
अनुच्छेद 51A – मौलिक कर्तव्यों की सूची:
- (a) संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
- (b) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना।
- (c) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।
- (d) देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करना।
- (e) भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना तथा महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध प्रथाओं का त्याग करना।
- (f) हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना।
- (g) प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखना।
- (h) वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करना।
- (i) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा का त्याग करना।
- (j) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना।
- (k) माता-पिता या अभिभावक द्वारा अपने 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (86वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
मौलिक अधिकार (FR) बनाम राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (DPSP)
संबंध और सर्वोच्चता पर न्यायिक निर्णय:
- गोलकनाथ केस (1967): संसद मौलिक अधिकारों को छीन नहीं सकती।
- 24वां संशोधन (1971): संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति दी गई।
- केशवानंद भारती मामला (1973): संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान की ‘मूल संरचना’ (Basic Structure) को नष्ट नहीं कर सकती। 13 न्यायाधीशों की पीठ ने यह निर्णय दिया।
- मिनर्वा मिल्स मामला (1980): संविधान मौलिक अधिकारों और DPSP के बीच संतुलन की आधारशिला पर आधारित है। यह संतुलन ‘मूल संरचना’ का हिस्सा है।
भाग-V: संघ (The Union)
यह भाग पाँच अध्यायों में विभाजित है:
- अध्याय 1: कार्यपालिका (The Executive) – अनुच्छेद 52-78
- अध्याय 2: संसद (Parliament) – अनुच्छेद 79-122
- अध्याय 3: राष्ट्रपति की विधायी शक्ति (Legislative Power of The President) – अनुच्छेद 123
- अध्याय 4: संघ न्यायपालिका (The Union Judiciary) – अनुच्छेद 124-147
- अध्याय 5: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India) – अनुच्छेद 148-151
अध्याय 1: संघ की कार्यपालिका (The Union Executive)
A. राष्ट्रपति (President)
- अनुच्छेद 52: भारत के राष्ट्रपति
- भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
- वह भारतीय संघ के प्रमुख और भारत के प्रथम नागरिक होते हैं।
- अनुच्छेद 53: संघ की कार्यकारी शक्ति
- संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी।
- संघ के रक्षा बलों की सर्वोच्च कमान राष्ट्रपति में निहित होगी।
- अनुच्छेद 54: राष्ट्रपति का चुनाव (Electoral College)
- राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:
- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य (Elected MPs)।
- राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य (Elected MLAs)।
- राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:
- अनुच्छेद 55: राष्ट्रपति के चुनाव की रीति (Manner of Election)
- चुनाव प्रक्रिया: अप्रत्यक्ष चुनाव।
- पद्धति: आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत (Proportional Representation + Single Transferable Vote) द्वारा।
- मतदान: गुप्त मतपत्र द्वारा।
- प्रस्तावक और अनुमोदक: 50 प्रस्तावक (proposers) और 50 अनुमोदक (seconders) की आवश्यकता होती है।
- अनुच्छेद 56: राष्ट्रपति के पद का कार्यकाल
- राष्ट्रपति पांच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा।
- वह अपना इस्तीफा उपराष्ट्रपति को देगा।
- अनुच्छेद 57: पुनः चुनाव के लिए पात्रता
- कोई भी व्यक्ति जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण कर चुका है, उस पद के लिए पुनः चुनाव के लिए पात्र होगा।
- अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति के रूप में चुनाव के लिए योग्यताएँ
- वह भारत का नागरिक हो।
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- लोक सभा के सदस्य के रूप में चुनाव के लिए पात्र हो।
- भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करता हो।
- अनुच्छेद 59: राष्ट्रपति कार्यालय की शर्तें
- राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा।
- उनके कार्यकाल के दौरान उनकी परिलब्धियाँ और भत्ते कम नहीं किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 60: राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
- अपने कार्यालय में प्रवेश करने से पहले, वह भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या उनकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय (SC) के वरिष्ठतम न्यायाधीश की उपस्थिति में शपथ लेंगे।
- अनुच्छेद 61: राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया (Impeachment)
- प्रक्रिया:
- आरोप संसद के किसी भी सदन द्वारा शुरू किया जा सकता है।
- प्रस्ताव कम से कम 14 दिनों के लिखित नोटिस के बाद पेश किया जाना चाहिए।
- नोटिस पर सदन के कुल सदस्यों में से कम से कम एक-चौथाई (1/4) सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर होने चाहिए।
- प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्यता के कम से कम दो-तिहाई (2/3) बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
- दूसरा सदन आरोपों की जांच करता है। यदि दूसरा सदन भी प्रस्ताव को कुल सदस्यता के दो-तिहाई बहुमत से पारित कर देता है, तो राष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाता है।
- यह एक अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) प्रक्रिया है।
- इसमें संसद के सभी सदस्य (निर्वाचित और मनोनीत) भाग लेते हैं।
- प्रक्रिया:
- अनुच्छेद 62: रिक्ति भरने के लिए चुनाव
- राष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति से पहले चुनाव पूरा किया जाना चाहिए।
- मृत्यु, इस्तीफे या निष्कासन की स्थिति में, उपराष्ट्रपति (या उनकी अनुपस्थिति में CJI, या SC के वरिष्ठतम न्यायाधीश) कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेंगे।
- अनुच्छेद 72: क्षमादान देने की राष्ट्रपति की शक्ति
- राष्ट्रपति के पास सजा को क्षमा करने, लघुकरण, परिहार, विराम या प्रविलंबन करने की शक्ति है। वह मौत की सजा को भी माफ कर सकते हैं।
- शक्तियों के प्रकार:
- क्षमा (Pardon): सजा और दोषसिद्धि दोनों से पूर्णतः मुक्त करना।
- लघुकरण (Commutation): सजा के स्वरूप को बदलना (जैसे, मृत्युदंड को आजीवन कारावास में)।
- परिहार (Remission): सजा की अवधि को कम करना, स्वरूप बदले बिना।
- विराम (Respite): विशेष परिस्थितियों (जैसे, स्वास्थ्य) के कारण कम सजा देना।
- प्रविलंबन (Reprieve): सजा पर अस्थायी रोक लगाना।
- नोट: राज्यपाल की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 161) के तहत वह कोर्ट-मार्शल और मौत की सजा को माफ नहीं कर सकते।
B. उपराष्ट्रपति (Vice-President)
- अनुच्छेद 63: भारत का उपराष्ट्रपति
- भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।
- अनुच्छेद 64: उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना
- उपराष्ट्रपति राज्य सभा (Council of States) का पदेन सभापति होगा और कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
- अनुच्छेद 65: उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना
- राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
- अनुच्छेद 66: उपराष्ट्रपति का चुनाव
- निर्वाचक मंडल: संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य (All MPs)।
- पद्धति: आनुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमणीय मत द्वारा।
- शर्त: वह संसद या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं होगा।
- योग्यताएँ:
- भारत का नागरिक हो।
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- राज्य सभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
- कोई लाभ का पद धारण न करता हो।
- अनुच्छेद 67: उपराष्ट्रपति का कार्यकाल
- अवधि: पांच वर्ष।
- इस्तीफा: राष्ट्रपति को।
- निष्कासन: राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा, जिसे लोक सभा ने स्वीकार किया हो।
- अनुच्छेद 68: रिक्ति भरने के लिए चुनाव का समय
- कार्यकाल समाप्त होने से पहले चुनाव पूरा हो जाना चाहिए।
- मृत्यु, इस्तीफे या निष्कासन के कारण हुई रिक्ति को भरने के लिए चुनाव 60 दिनों के भीतर होना चाहिए।
- अनुच्छेद 69: उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
- उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति या उनके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेंगे।
- अनुच्छेद 70: अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन
- अनुच्छेद 71: राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित मामले
- राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित सभी संदेहों और विवादों की जांच और निर्णय केवल उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) द्वारा किया जाएगा।
संघीय कार्यपालिका: प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद (PM & CoMs)
अनुच्छेद 74: राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
- राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री (PM) के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद (CoMs) होगी।
- 42वां संशोधन: राष्ट्रपति के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह बाध्यकारी (Binding) बना दी गई।
- 44वां संशोधन: राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है, लेकिन पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा।
- मंत्रियों द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह की किसी भी अदालत में जांच नहीं की जाएगी।
- राष्ट्रपति: नाममात्र/सांविधानिक प्रमुख (Nominal/Titular/de jure head)।
- प्रधानमंत्री: वास्तविक प्रमुख (Real power/de facto head)।
अनुच्छेद 75: मंत्रियों के बारे में अन्य प्रावधान
- (75(1)): प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
- (75(1A)): मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोक सभा (LS) की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी। (91वां संशोधन, 2003 द्वारा जोड़ा गया)।
- (75(1B)): दलबदल के आधार पर अयोग्य ठहराया गया कोई भी सदस्य मंत्री के रूप में नियुक्त होने के लिए भी अयोग्य होगा।
- (75(2)): मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत (pleasure) पद धारण करेंगे। (व्यक्तिगत उत्तरदायित्व)
- (75(3)): मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगी। (सामूहिक उत्तरदायित्व)
- (75(4)): किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति उसे पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
- (75(5)): कोई मंत्री जो लगातार 6 महीने की अवधि तक संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है, वह मंत्री नहीं रहेगा।
- (75(6)): मंत्रियों के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
अनुच्छेद 77: भारत सरकार के कार्य का संचालन
अनुच्छेद 78: प्रधानमंत्री के कर्तव्य
- यह राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच एक कड़ी (linchpin) के रूप में कार्य करता है।
महान्यायवादी (Attorney-General for India) – अनुच्छेद 76
- वह देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है।
- नियुक्ति: राष्ट्रपति द्वारा।
- योग्यता: उसे सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य होना चाहिए।
- कार्य: भारत सरकार को कानूनी मामलों पर सलाह देना।
- अधिकार: उसे भारत के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार है।
- कार्यकाल: राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है (निश्चित नहीं)।
- वर्तमान: आर. वेंकटरमणी (R. Venkataramani)।
- प्रथम: एम. सी. सीतलवाड़ (M. C. Setalvad)।
राज्य कार्यपालिका: राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद
भाग-VI: राज्य (The State)
राज्यपाल (Governor)
- अनुच्छेद 153: राज्यों के राज्यपाल। प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। (7वें संशोधन द्वारा, एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है)।
- अनुच्छेद 154: राज्य की कार्यकारी शक्ति। राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होगी।
- अनुच्छेद 155: राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- अनुच्छेद 156: राज्यपाल का कार्यकाल।
- वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा।
- वह अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को दे सकता है।
- सामान्यतः वह पांच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा।
- अनुच्छेद 157: राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के लिए योग्यताएँ।
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
- अनुच्छेद 158: राज्यपाल के कार्यालय की शर्तें।
- वह संसद या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं होगा।
- वह कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
- उसके कार्यकाल के दौरान उसके परिलब्धियाँ और भत्ते कम नहीं किए जाएंगे।
- अनुच्छेद 159: राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान। वह संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शपथ लेगा।
- अनुच्छेद 160: कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कार्यों का निर्वहन।
- अनुच्छेद 161: राज्यपाल की क्षमादान शक्ति।
- अनुच्छेद 162: राज्य की कार्यकारी शक्ति का विस्तार।
मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद (CM & CoMs)
- अनुच्छेद 163: राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद।
- अनुच्छेद 164: मंत्रियों के बारे में अन्य प्रावधान (लगभग अनुच्छेद 75 के समान)।
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी।
- अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
- मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या विधान सभा (LA) की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी।
- मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
- अनुच्छेद 165: राज्य के लिए महाधिवक्ता (Advocate-General)।
- अनुच्छेद 166: राज्य सरकार के कार्य का संचालन।
- अनुच्छेद 167: मुख्यमंत्री के कर्तव्य।
संसद (Parliament)
अनुच्छेद 79: संसद का गठन (Constitution of Parliament)
- संघ के लिए एक संसद होगी जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन होंगे, जिन्हें क्रमशः राज्य सभा (Council of States) और लोक सभा (House of People) के नाम से जाना जाएगा।
- राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग है, क्योंकि कोई भी विधेयक उसकी सहमति के बिना कानून नहीं बन सकता।
अनुच्छेद 80: राज्य सभा की संरचना (Composition of the Council of States)
- अन्य नाम: उच्च सदन (Upper House), द्वितीय सदन (2nd chamber), बड़ों का सदन (House of elders)।
- अधिकतम सदस्य संख्या: 250 (वर्तमान: 245)।
- संरचना:
- 12 सदस्य: राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत। ये सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति होते हैं।
- 238 सदस्य: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि।
- राज्यों के प्रतिनिधि: राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा चुने जाते हैं।
- केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि: संसद द्वारा कानून द्वारा निर्धारित तरीके से चुने जाते हैं (वर्तमान में दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर से)।
- न्यूनतम आयु: 30 वर्ष।
- पहली बैठक: 13 मई 1952।
अनुच्छेद 81: लोक सभा की संरचना (Composition of the House of the People)
- अन्य नाम: निम्न सदन (Lower House), प्रथम सदन (1st chamber)।
- संरचना:
- राज्यों से: प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए 530 से अधिक सदस्य नहीं।
- केंद्र शासित प्रदेशों से: 20 से अधिक सदस्य नहीं।
- नोट: एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 सदस्यों को मनोनीत करने का प्रावधान 104वें संशोधन अधिनियम द्वारा समाप्त कर दिया गया है।
- चुनाव: प्रत्यक्ष चुनाव (Direct election), फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली पर आधारित।
- न्यूनतम आयु: 25 वर्ष।
- पहली बैठक: 17 अप्रैल 1952 (कुछ स्रोतों के अनुसार 13 मई 1952)।
अनुच्छेद 82: प्रत्येक जनगणना के बाद पुनः समायोजन (Readjustment after each census
अनुच्छेद 83: सदनों की अवधि (Duration of Houses of Parliament)
- राज्य सभा:
- यह एक स्थायी सदन है और इसका विघटन नहीं होता।
- इसके एक-तिहाई (1/3rd) सदस्य हर 2 साल में सेवानिवृत्त होते हैं।
- लोक सभा:
- इसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, जिसके बाद इसका विघटन हो जाता है।
- आपातकाल के दौरान इसका कार्यकाल एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है।
अनुच्छेद 84: संसद की सदस्यता के लिए योग्यता (Qualification for membership of Parliament)
- भारत का नागरिक हो।
- राज्य सभा के लिए: 30 वर्ष से कम आयु का न हो।
- लोक सभा के लिए: 25 वर्ष से कम आयु का न हो।
अनुच्छेद 85: संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन (Sessions of Parliament, prorogation and dissolution)
- सत्र बुलाना (Summon): राष्ट्रपति समय-समय पर प्रत्येक सदन को सत्र के लिए बुलाएगा। दो सत्रों के बीच 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। (आमतौर पर 3 सत्र होते हैं: बजट, मानसून, शीतकालीन)।
- सत्रावसान (Prorogue): राष्ट्रपति समय-समय पर सदनों या किसी भी सदन का सत्रावसान कर सकता है।
- विघटन (Dissolve): राष्ट्रपति समय-समय पर लोक सभा का विघटन कर सकता है (राज्य सभा स्थायी सदन है)।
अनुच्छेद 86: राष्ट्रपति का अभिभाषण और संदेश भेजने का अधिकार (Right of President to address and send messages to Houses)
- राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन या दोनों सदनों को एक साथ संबोधित कर सकता है।
- राष्ट्रपति संसद में लंबित किसी विधेयक के संबंध में सदनों को संदेश भेज सकता है।
अनुच्छेद 87: राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण (Special address by the President)
- राष्ट्रपति दो अवसरों पर दोनों सदनों को एक साथ संबोधित करता है:
- प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र के प्रारंभ में।
- प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में।
- इस अभिभाषण पर “धन्यवाद प्रस्ताव” (Motion of Thanks) पर चर्चा और मतदान होता है।
अनुच्छेद 88: सदनों के संबंध में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार (Rights of Ministers and Attorney-General as respects Houses)
- प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को किसी भी सदन में बोलने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा।
- हालांकि, इस अधिकार के आधार पर वे मतदान करने के हकदार नहीं होंगे (वे केवल उसी सदन में मतदान कर सकते हैं जिसके वे सदस्य हैं)।
भारतीय संसद – त्वरित पुनरीक्षण नोट्स
भाग 1: संसद का गठन और संरचना
- अनुच्छेद 79: संसद का गठन
- संसद = राष्ट्रपति + राज्य सभा + लोक सभा।
- अनुच्छेद 80: राज्य सभा की संरचना
- अधिकतम सदस्य: 250 (238 निर्वाचित, 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत)।
- चुनाव: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधायकों द्वारा एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Vote) प्रणाली से।
- अनुच्छेद 81: लोक सभा की संरचना
- अधिकतम सदस्य: 550 (530 राज्यों से + 20 केंद्र शासित प्रदेशों से)।
- चुनाव: जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ प्रणाली से।
- अनुच्छेद 83: सदनों की अवधि
- राज्य सभा: स्थायी सदन है। 1/3 सदस्य हर 2 साल में सेवानिवृत्त होते हैं।
- लोक सभा: कार्यकाल 5 वर्ष, जब तक कि पहले भंग न हो जाए।
- अनुच्छेद 84: संसद की सदस्यता के लिए योग्यता
- भारत का नागरिक हो।
- राज्य सभा: न्यूनतम 30 वर्ष आयु।
- लोक सभा: न्यूनतम 25 वर्ष आयु।
- अनुच्छेद 82: प्रत्येक जनगणना के बाद पुनः समायोजन
- प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) द्वारा सीटों का समायोजन।
- 84वें संविधान संशोधन द्वारा यह 2026 तक स्थिर (Frozen) कर दिया गया है।
भाग 2: संसद के सत्र और अधिकारी
- अनुच्छेद 85: संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन
- राष्ट्रपति: सत्र बुलाते (Summon), सत्रावसान (Prorogue) करते हैं और लोक सभा को भंग (Dissolve) करते हैं।
- दो सत्रों के बीच अधिकतम 6 महीने का अंतराल हो सकता है।
- अनुच्छेद 86: राष्ट्रपति का अभिभाषण और संदेश
- राष्ट्रपति किसी भी सदन या दोनों सदनों को एक साथ संबोधित कर सकते हैं और संदेश भेज सकते हैं।
- अनुच्छेद 87: राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण
- लोक सभा चुनाव के बाद पहले सत्र में और प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र में।
- अनुच्छेद 88: मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार
- वे दोनों सदनों की कार्यवाही में बोल सकते हैं और भाग ले सकते हैं, लेकिन वोट केवल उसी सदन में दे सकते हैं जिसके वे सदस्य हैं।
भाग 3: संसद के अधिकारी (Officers of Parliament)
- राज्य सभा (अनुच्छेद 89-92)
- अनुच्छेद 89: सभापति (भारत के उपराष्ट्रपति) और उपसभापति (राज्य सभा द्वारा निर्वाचित)।
- अनुच्छेद 91: सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।
- अनुच्छेद 92: जब सभापति या उपसभापति को हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो, तो वे सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते।
- लोक सभा (अनुच्छेद 93-97)
- अनुच्छेद 93: अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव लोक सभा सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- अनुच्छेद 95: अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।
- अनुच्छेद 96: जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो, तो वे सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते।
- अनुच्छेद 97: अध्यक्ष/उपाध्यक्ष के वेतन-भत्ते संसद द्वारा निर्धारित होते हैं।
- अनुच्छेद 98: संसद का सचिवालय
- प्रत्येक सदन का अपना अलग सचिवालय होता है।
भाग 4: सदस्यता, निरर्हता और शपथ
- अनुच्छेद 99: सदस्यों द्वारा शपथ
- सदस्यों को अपना स्थान ग्रहण करने से पहले शपथ लेना अनिवार्य है।
- अनुच्छेद 100: मतदान और गणपूर्ति (Quorum)
- गणपूर्ति: सदन की कार्यवाही के लिए कुल सदस्यों का 1/10 हिस्सा उपस्थित होना चाहिए।
- मत बराबर होने की स्थिति में अध्यक्ष (या पीठासीन अधिकारी) निर्णायक मत (Casting Vote) देते हैं।
- अनुच्छेद 101: स्थानों का रिक्त होना
- दोहरी सदस्यता, 60 दिनों से अधिक बिना अनुमति अनुपस्थित रहने पर सीट रिक्त हो जाती है।
- अनुच्छेद 102: सदस्यता के लिए निरर्हता (Disqualifications)
- लाभ का पद, विकृतจิต (Unsound mind), दिवालिया, विदेशी नागरिकता या दल-बदल कानून (10वीं अनुसूची) के तहत।
- अनुच्छेद 103: निरर्हता पर निर्णय
- राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सलाह पर निर्णय लेते हैं।
- अनुच्छेद 104: बिना योग्यता के बैठने पर जुर्माना
- ₹ 500 प्रति दिन का जुर्माना।
- अनुच्छेद 105: संसदीय विशेषाधिकार
- संसद में भाषण की स्वतंत्रता।
- संसद की कार्यवाही के लिए किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं।
भाग 5: विधायी और वित्तीय प्रक्रिया
- अनुच्छेद 107: साधारण विधेयक
- किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। लोक सभा के भंग होने पर विधेयक समाप्त (Lapse) हो जाता है।
- अनुच्छेद 108: संयुक्त बैठक (Joint Sitting)
- केवल साधारण विधेयकों पर गतिरोध होने पर राष्ट्रपति द्वारा बुलाई जाती है।
- अनुच्छेद 110: धन विधेयक की परिभाषा (Money Bill)
- कर, उधार, संचित निधि से संबंधित मामले।
- लोक सभा अध्यक्ष प्रमाणित करते हैं कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं।
- अनुच्छेद 109: धन विधेयक की विशेष प्रक्रिया
- केवल लोक सभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- राज्य सभा 14 दिनों के भीतर सुझाव दे सकती है, जिसे मानना या न मानना लोक सभा पर निर्भर है।
- अनुच्छेद 111: विधेयकों पर राष्ट्रपति की अनुमति
- स्वीकृति देना, रोकना, या पुनर्विचार के लिए लौटाना (धन विधेयक को छोड़कर)।
- अनुच्छेद 112: वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट)
- राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष रखवाया जाता है।
- अनुच्छेद 113: अनुदान की मांगें
- इन पर केवल लोक सभा मतदान करती है।
- अनुच्छेद 114: विनियोग विधेयक (Appropriation Bill)
- भारत की संचित निधि से धन निकालने के लिए पारित किया जाता है।
- अनुच्छेद 117: वित्त विधेयक (Financial Bill)
- धन विधेयक इसका एक हिस्सा है। इसे प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक है।
भाग 6: सामान्य प्रक्रिया और शक्तियाँ
- अनुच्छेद 118: प्रक्रिया के नियम
- प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया के लिए नियम बनाता है।
- अनुच्छेद 120: संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
- हिन्दी या अंग्रेजी। मातृभाषा का प्रयोग अध्यक्ष की अनुमति से किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 121: न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा पर रोक
- महाभियोग के अलावा न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा नहीं हो सकती।
- अनुच्छेद 122: न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाही की जांच न करना
- न्यायालय संसद की कार्यवाही की जांच नहीं कर सकता।
- अनुच्छेद 123: राष्ट्रपति की अध्यादेश (Ordinance) जारी करने की शक्ति
- जब संसद सत्र में न हो तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकते हैं।
- संसद की पुनः बैठक के 6 सप्ताह के भीतर इसे पारित करना होता है, अन्यथा यह समाप्त हो जाता है।
राज्य विधानमंडल – त्वरित पुनरीक्षण नोट्स
भाग 1: राज्यपाल (The Governor)
- अनुच्छेद 153: प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। (7वें संशोधन के अनुसार, एक व्यक्ति दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है)।
- अनुच्छेद 154: राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होगी।
- अनुच्छेद 155: राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- अनुच्छेद 156: राज्यपाल का कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्ष होता है, लेकिन वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत (pleasure of the President) पद धारण करता है।
- अनुच्छेद 157: योग्यता: भारत का नागरिक हो और न्यूनतम 35 वर्ष की आयु हो।
- अनुच्छेद 159: राज्यपाल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेता है।
- अनुच्छेद 161: क्षमादान की शक्ति: राज्यपाल राज्य विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सजा को क्षमा, प्रविलंबन, विराम या परिहार कर सकता है। (मृत्युदंड को पूरी तरह माफ नहीं कर सकता)।
भाग 2: मंत्रिपरिषद और महाधिवक्ता
- अनुच्छेद 163: राज्यपाल को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होगा।
- अनुच्छेद 164:
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर होती है।
- मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
- कोई मंत्री जो 6 महीने तक विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उसे पद छोड़ना होगा।
- अनुच्छेद 165: राज्य का महाधिवक्ता (Advocate-General): राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है और राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
- अनुच्छेद 167: मुख्यमंत्री का कर्तव्य है कि वह राज्य के प्रशासन और विधान संबंधी जानकारी राज्यपाल को दे।
भाग 3: राज्य विधानमंडल की संरचना
- अनुच्छेद 168: विधानमंडल का गठन = राज्यपाल + विधान सभा (+ विधान परिषद, यदि है)। (वर्तमान में 6 राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था है)।
- अनुच्छेद 169: संसद, राज्य की विधान सभा द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव पर, विधान परिषद का सृजन या उत्सादन (creation or abolition) कर सकती है।
- अनुच्छेद 170:विधान सभा (Legislative Assembly) की संरचना:
- न्यूनतम 60 और अधिकतम 500 सदस्य। (अपवाद: गोवा, सिक्किम आदि)।
- सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।
- अनुच्छेद 171:विधान परिषद (Legislative Council) की संरचना:
- सदस्य संख्या विधान सभा की कुल संख्या के 1/3 से अधिक नहीं और 40 से कम नहीं।
- चुनाव: 1/3 स्थानीय निकायों द्वारा, 1/3 विधान सभा सदस्यों द्वारा, 1/12 स्नातकों द्वारा, 1/12 शिक्षकों द्वारा, और 1/6 राज्यपाल द्वारा मनोनीत।
- अनुच्छेद 172:सदनों की अवधि:
- विधान सभा: 5 वर्ष।
- विधान परिषद: स्थायी सदन, 1/3 सदस्य हर 2 साल में सेवानिवृत्त होते हैं।
- अनुच्छेद 173:सदस्यता के लिए योग्यता:
- भारत का नागरिक हो।
- विधान सभा: न्यूनतम 25 वर्ष।
- विधान परिषद: न्यूनतम 30 वर्ष।
भाग 4: विधानमंडल के अधिकारी और कार्यवाही
- अनुच्छेद 178-181: विधान सभा के अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव और उनके कार्य।
- अनुच्छेद 182-185: विधान परिषद के सभापति (Chairman) और उपसभापति (Deputy Chairman) का चुनाव और उनके कार्य।
- अनुच्छेद 174: सत्र, सत्रावसान और विघटन: राज्यपाल सत्र बुलाता है। दो सत्रों के बीच 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।
- अनुच्छेद 176: राज्यपाल का विशेष अभिभाषण (चुनाव के बाद और वर्ष के पहले सत्र में)।
- अनुच्छेद 189: मतदान और गणपूर्ति (Quorum): सदन की कार्यवाही के लिए कुल सदस्यों का 1/10 उपस्थित होना चाहिए।
- अनुच्छेद 190-192: सदस्यों की निरर्हता (Disqualification): लाभ का पद, दल-बदल आदि के आधार पर। इस पर राज्यपाल का निर्णय (चुनाव आयोग की सलाह पर) अंतिम होता है।
- अनुच्छेद 194: विधानमंडल के सदस्यों के विशेषाधिकार (संसद के सदस्यों के समान)।
भाग 5: विधायी और वित्तीय प्रक्रिया
- अनुच्छेद 196: साधारण विधेयक विधान परिषद द्वारा अधिकतम 4 महीने (3+1) तक रोके जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 198-199: धन विधेयक (Money Bill): केवल विधान सभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। विधान परिषद इसे 14 दिनों से अधिक नहीं रोक सकती।
- अनुच्छेद 200: विधेयकों पर राज्यपाल की अनुमति: राज्यपाल अनुमति दे सकता है, रोक सकता है, पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है, या राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है।
- अनुच्छेद 201: राष्ट्रपति के लिए आरक्षित विधेयक।
- अनुच्छेद 202: वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट)।
- अनुच्छेद 204: विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) – संचित निधि से धन निकालने के लिए।
- अनुच्छेद 207: वित्त विधेयक (Financial Bill)।
भाग 6: सामान्य नियम और राज्यपाल की विधायी शक्ति
- अनुच्छेद 210: विधानमंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा (राजभाषा या हिंदी/अंग्रेजी)।
- अनुच्छेद 212: न्यायालयों द्वारा विधानमंडल की कार्यवाही की जांच नहीं की जाएगी।
- अनुच्छेद 213:राज्यपाल की अध्यादेश (Ordinance) जारी करने की शक्ति:
- जब विधानमंडल सत्र में न हो।
- यह अध्यादेश विधानमंडल के पुनः सत्र में आने के 6 सप्ताह के भीतर पारित होना चाहिए, अन्यथा समाप्त हो जाएगा।
राज्य विधानमंडल – (State Legislature)
भाग 1: राज्यपाल (The Governor)
- अनुच्छेद 153: प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। (7वें संशोधन के अनुसार, एक व्यक्ति दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है)।
- अनुच्छेद 154: राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होगी।
- अनुच्छेद 155: राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- अनुच्छेद 156: राज्यपाल का कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्ष होता है, लेकिन वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत (pleasure of the President) पद धारण करता है।
- अनुच्छेद 157: योग्यता: भारत का नागरिक हो और न्यूनतम 35 वर्ष की आयु हो।
- अनुच्छेद 159: राज्यपाल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेता है।
- अनुच्छेद 161: क्षमादान की शक्ति: राज्यपाल राज्य विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सजा को क्षमा, प्रविलंबन, विराम या परिहार कर सकता है। (मृत्युदंड को पूरी तरह माफ नहीं कर सकता)।
भाग 2: मंत्रिपरिषद और महाधिवक्ता
- अनुच्छेद 163: राज्यपाल को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होगा।
- अनुच्छेद 164:
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर होती है।
- मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
- कोई मंत्री जो 6 महीने तक विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उसे पद छोड़ना होगा।
- अनुच्छेद 165: राज्य का महाधिवक्ता (Advocate-General): राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है और राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
- अनुच्छेद 167: मुख्यमंत्री का कर्तव्य है कि वह राज्य के प्रशासन और विधान संबंधी जानकारी राज्यपाल को दे।
भाग 3: राज्य विधानमंडल की संरचना
- अनुच्छेद 168: विधानमंडल का गठन = राज्यपाल + विधान सभा (+ विधान परिषद, यदि है)। (वर्तमान में 6 राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था है)।
- अनुच्छेद 169: संसद, राज्य की विधान सभा द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव पर, विधान परिषद का सृजन या उत्सादन (creation or abolition) कर सकती है।
- अनुच्छेद 170:विधान सभा (Legislative Assembly) की संरचना:
- न्यूनतम 60 और अधिकतम 500 सदस्य। (अपवाद: गोवा, सिक्किम आदि)।
- सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।
- अनुच्छेद 171:विधान परिषद (Legislative Council) की संरचना:
- सदस्य संख्या विधान सभा की कुल संख्या के 1/3 से अधिक नहीं और 40 से कम नहीं।
- चुनाव: 1/3 स्थानीय निकायों द्वारा, 1/3 विधान सभा सदस्यों द्वारा, 1/12 स्नातकों द्वारा, 1/12 शिक्षकों द्वारा, और 1/6 राज्यपाल द्वारा मनोनीत।
- अनुच्छेद 172:सदनों की अवधि:
- विधान सभा: 5 वर्ष।
- विधान परिषद: स्थायी सदन, 1/3 सदस्य हर 2 साल में सेवानिवृत्त होते हैं।
- अनुच्छेद 173:सदस्यता के लिए योग्यता:
- भारत का नागरिक हो।
- विधान सभा: न्यूनतम 25 वर्ष।
- विधान परिषद: न्यूनतम 30 वर्ष।
भाग 4: विधानमंडल के अधिकारी और कार्यवाही
- अनुच्छेद 178-181: विधान सभा के अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव और उनके कार्य।
- अनुच्छेद 182-185: विधान परिषद के सभापति (Chairman) और उपसभापति (Deputy Chairman) का चुनाव और उनके कार्य।
- अनुच्छेद 174: सत्र, सत्रावसान और विघटन: राज्यपाल सत्र बुलाता है। दो सत्रों के बीच 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।
- अनुच्छेद 176: राज्यपाल का विशेष अभिभाषण (चुनाव के बाद और वर्ष के पहले सत्र में)।
- अनुच्छेद 189: मतदान और गणपूर्ति (Quorum): सदन की कार्यवाही के लिए कुल सदस्यों का 1/10 उपस्थित होना चाहिए।
- अनुच्छेद 190-192: सदस्यों की निरर्हता (Disqualification): लाभ का पद, दल-बदल आदि के आधार पर। इस पर राज्यपाल का निर्णय (चुनाव आयोग की सलाह पर) अंतिम होता है।
- अनुच्छेद 194: विधानमंडल के सदस्यों के विशेषाधिकार (संसद के सदस्यों के समान)।
भाग 5: विधायी और वित्तीय प्रक्रिया
- अनुच्छेद 196: साधारण विधेयक विधान परिषद द्वारा अधिकतम 4 महीने (3+1) तक रोके जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 198-199: धन विधेयक (Money Bill): केवल विधान सभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। विधान परिषद इसे 14 दिनों से अधिक नहीं रोक सकती।
- अनुच्छेद 200: विधेयकों पर राज्यपाल की अनुमति: राज्यपाल अनुमति दे सकता है, रोक सकता है, पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है, या राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है।
- अनुच्छेद 201: राष्ट्रपति के लिए आरक्षित विधेयक।
- अनुच्छेद 202: वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट)।
- अनुच्छेद 204: विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) – संचित निधि से धन निकालने के लिए।
- अनुच्छेद 207: वित्त विधेयक (Financial Bill)।
भाग 6: सामान्य नियम और राज्यपाल की विधायी शक्ति
- अनुच्छेद 210: विधानमंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा (राजभाषा या हिंदी/अंग्रेजी)।
- अनुच्छेद 212: न्यायालयों द्वारा विधानमंडल की कार्यवाही की जांच नहीं की जाएगी।
- अनुच्छेद 213:राज्यपाल की अध्यादेश (Ordinance) जारी करने की शक्ति:
- जब विधानमंडल सत्र में न हो।
- यह अध्यादेश विधानमंडल के पुनः सत्र में आने के 6 सप्ताह के भीतर पारित होना चाहिए, अन्यथा समाप्त हो जाएगा।